नई दिल्ली। देश के दिल दिल्ली में 26 जनवरी 2021 के दिन सड़क से लेकर लालकिले की प्राचीर तक जमकर ताडंव हुआ था, जिस ढंग से कुछ लोगों के द्वारा राष्ट्रीय महापर्व के दिन विश्व में भारत की छवि खराब करने का अक्षम्य अपराध करने का दुस्साहस किया गया, उसकी सजा सभी दोषियों को मिलना बेहद आवश्यक है। जिस तरह से अन्नदाता किसानों के आंदोलन की आड़ में अपने क्षणिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए छल कपट झूठ प्रपंच की ओछी राजनीति करने वाले चंद लोगों ने शांतिपूर्ण आंदोलन को बदनाम करने का जघन्य अपराध का कार्य किया, वह बेहद शर्मनाक कृत्य है। देशद्रोहियों ने चंद लोगों से मिलकर देश की आन-बान-शान लालकिले की प्राचीर पर धार्मिक ध्वज फहरा कर भारत के इतिहास में एक काला अध्याय लिखने का दुस्साहस किया है, जिसको प्रत्येक देशभक्त भारतीय को भूलने में शायद दशकों लग सकते हैं। राष्ट्रीय महापर्व 26 जनवरी के गौरवशाली दिन पर जिस तरह से चंद षड्यंत्रकारी लोगों ने अपने क्षणिक राजनीतिक स्वार्थ के लिए देश की शान व अस्मिता से खिलवाड़ करने का दुस्साहस किया वह बेहद गंभीर श्रेणी का अक्षम्य अपराध है।
देश के लिए हर समय अपने प्राण न्यौछावर करने के लिए तैयार रहने वाले सच्चे देशभक्त अन्नदाता किसानों की छवि को बट्टा लगाने के लिए इतना घिनौना हथकंडा माफी योग्य अपराध नहीं है। लंबे समय से शांतिपूर्वक ढंग से चल रहे अन्नदाता किसानों के आंदोलन में 26 जनवरी की ट्रैक्टर परेड़ के दौरान देश की राजधानी दिल्ली की सड़कों पर गणतंत्र दिवस के दिन मचे हुडदंग को देखकर लगता है कि देशहित में सभी देशवासियों, विशेषकर चंद लोगों व चंद राजनेताओं को बहुत जल्द गणतंत्र के वास्तविक मायने एकबार फिर से समय रहते जल्द से जल्द समझने होंगे! सभी को एकबार फिर से यह समझना होगा कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैले हमारे प्यारे देश भारत की महान भूमि विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं को पालने पोषने वाली धराओं में से एक है, जहां पर हिंसा व षड्यंत्र के लिए कोई स्थान नहीं है। जिस महान देश में प्राचीन काल से लेकर आज के आधुनिक काल तक में अलग-अलग धर्म को मानने वाले अलग-अलग भाषा को बोलने वाले लोग अपनी बहुरंगी विविधता और समृद्धशाली व गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत के साथ पूर्ण स्वतंत्रता के साथ निवास करते हैं, वहां की जनता का कानून पसंद होना आवश्यक है। विश्व के विभिन्न देशों के लोग यह देखकर आश्चर्यचकित रहते हैं कि भारत में जिस तरह से कदम-कदम पर पानी, वाणी, पहनावा और यहां तक की कर्मकांड व संकृति तक भी बदल जाती है, आखिरकार इतनी अधिक विविधताओं को अपने आप में समेटे हुए देश को आखिर क्या आपस में जोड़ता है।
आखिरकार देश की जनता की एकजुटता का राज क्या है, आखिर देश को तमाम विपरीत परिस्थितियों में चलाने वाला वो बेहद शक्तिशाली मूल मंत्र क्या है, आखिर क्या है जो भारत की मूल आत्मा है, आखिर क्या है जो देश में अलग रंग रूप व विविध भाषाओं के बाद भी एकजुट करके रखता है, आखिर क्या है जो विभिन्न धर्मों वाले लोगों को समान अधिकार देता है और इतनी विविधता होने के बाद भी भारत को इस तरह से जोड़कर रखता हैं। तो इसका एकमात्र जवाब है भारत का सर्वशक्तिमान संविधान जो प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की पूर्ण आज़ादी के साथ-साथ समान अधिकार देकर नियम-कायदे बनाकर उसके जीवन को बेहद सरल बना दाता है। वैसे हमारा प्यारा देश भारत 28 राज्यों व 8 केंद्र शासित प्रदेशों को मिलकर बना हुआ है, जिसमें 1.36 अरब निवासियों का बहुधर्मी समाज बिना किसी भेदभाव के प्रेमपूर्वक एकजुटता के साथ निवास करता है, जहां पर हर धर्म के अनुयायी को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता मिली हुई है। धर्म की दृष्टि से बात करे तो विश्व के सबसे प्राचीन धर्म सनातन धर्म को मानने वाले हमारे देश भारत चार प्रमुख धर्मों की उदयभूमि भी है, यहां संविधान से मान्यता प्राप्त 22 भाषाएं हैं, यहां पर विभिन्न मत-पंथ व संप्रदाय, परम्परा, रीति रिवाज, त्यौहार आदि हैं। लेकिन फिर भी हम सभी भारतीय लोग एकजुट होकर आपसी भाईचारे से मिलजुल कर प्यार से शांतिपूर्ण ढंग से रहते हैं।
जब तक कोई हम भारतीयों को बार-बार उकसाता नहीं है हम आक्रामक नहीं होते हैं। हमारे देशभक्त महान पूर्वजों के लंबे संघर्ष व बलिदानों के बाद 15 अगस्त 1947 को जिस समय देश के ब्रिटिश शासन से आज़ाद होने के बाद अपना भाग्यविधाता ख़ुद होने के एहसास में प्रत्येक भारतीय के मन को जबरदस्त खुशी से गुदगुदा रहा था, उस समय हर सच्चे देशभक्त भारतीय का मन अग्रेजों की गुलामी की जंजीरों से मुक्त होकर गर्व से अपने प्यारे देश आज़ाद भारत के आसमान में उड़ना चाहता था। आज़ाद भारत के तत्कालीन नीतिनिर्माताओं से प्रत्येक भारतीय की उम्मीदों का कोई ओर-छोर नहीं था, प्रत्येक देशवासी को उनसे बहुत ज्यादा उम्मीदें थी, हालांकि उम्मीदों के इस बेहद मधुर एहसास में कदम-कदम पर एक बहुत बड़ी चुनौती सरकार व आम जनमानस के लिए छिपी हुई थी कि कैसे हमारे देश के तंत्र को देशवासियों की उम्मीदों पर खरा उतर कर देश को व्यवस्थित करके विकास की पटरी पर अग्रसित किया जाये। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए देश के नीतिनिर्माताओं ने संविधान बनाया और 26 जनवरी 1950 के दिन ही हमारे देश में अपना स्वयं का सर्वशक्तिमान संविधान लागू हुआ था, जिसके उपलक्ष्य में हर साल 26 जनवरी के दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है, वैसे तो देश को एक स्वतंत्र गणराज्य बनने के लिए भारतीय संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को संविधान को अपनाया गया था, लेकिन इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था।
गणतंत्र वह शासन प्रणाली है जिसमें प्रमुख सत्ता लोक या जनता अथवा उसके चुने हुए प्रतिनिधियों या अधिकारियों के हाथ में होती है और जिसकी नीति आदि निर्धारित करने का सब लोगों को समान रूप से अधिकार होता है। वैसे गणतंत्र का सीधा सरल शब्दों में मेरे अनुसार अर्थ यह है कि अपने प्यारे देश में अपना स्वयं का तंत्र, मतलब अपने नियम-कायदे-कानून व तंत्र जिनके द्वारा देश की हर तरह की व्यवस्था को नियंत्रित करते हुए देश में रहने वाले लोगों की भलाई के लिए कार्य किये जा सकें, जिसके द्वारा देश के नागरिकों के विकास और देश के नेतृत्व के लिये अपना नेता स्वयं चुनने के लिए पूर्ण आज़ादी हो, यह हमारे देश के नीतिनिर्माताओं के द्वारा आम जनमानस को भारतीय संविधान के द्वारा दिया गया सर्वोच्च उपहार है। लेकिन हम सभी देशवासियों को यह भी समझना होगा कि यह उपहार हमें आसानी से नहीं मिला है, इसको हासिल करने के लिए माँ भारती के अनगिनत वीर सपूतों ने अंग्रेजों के खिलाफ विरोध का बिगुल बजाकर जेल की सलाखों के पीछे रहकर जीवन के अनमोल पल व्यतीत करते हुए अपने प्राण तक देश की आज़ादी के लिए न्यौछावर किये थे, तब कहीं जाकर अंग्रेजों की गुलामी से देश की जनता को मुक्ति मिली थी। देश को गणतंत्र की राह तक पहुंचाने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने बहुत लंबा कठिन संघर्ष किया था, जिसके बारे में एक सच्चा देशभक्त इंसान ही बेहतर ढंग से समझ सकता है, बाकी लोगों के लिए यह सब कुछ समझ पाना बेहद मुश्किल ही नहीं बिल्कुल नामुमकिन है। लेकिन आज यह हम लोगों का दायित्व है कि जिन्होंने हमारे लिए अपने प्राणों की आहूति दी है, हम उनके सपने को साकार कर सकें, भारत को उनके सपनों के अनुसार बना सकें, अपनी आने वाली पीढ़ियों को आज़ादी की हवा में खुली सांस लेने दे सकें और देश को विकास के पथ पर आगे लेकर जाए और विश्व में सफलता के नितनये कीर्तिमान स्थापित करें। वैसे आजकल हमारे देश में जिस तरह से चंद राजनेताओं की कृपा से बात-बात पर हंगामा बरप जाता है, हाल के दिनों में अन्नदाता किसानों से जुड़े तीनों कृषि कानूनों पर चल रही राजनीति को देखकर वह स्पष्ट नज़र आता है, यह स्थिति देश के विकास व सभ्य समाज के लिए बेहद घातक व चिंतनीय है, अभी हाल ही में जिस तरह से अन्नदाता किसानों के आंदोलन के दौरान 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड़ के समय कुछ षड्यंत्रकारी देशद्रोही लोगों ने लालकिले की प्राचीर पर धर्म विशेष का ध्वज फहराने का कार्य किया था, उसके बाद से लोकतांत्रिक व्यवस्था को मानने वाले गणतांत्रिक देश में हमारे क्या अधिकार व क्या जिम्मेदारियों हैं इन पर एक नयी बहस जन्म ले रही है,
जिस समय सरकार को किसानों को पूर्ण रूप से अपने विश्वास में लेकर के उनके हित में कार्य करना चाहिए, उस वक्त देश में जबरदस्त ढंग से सड़कों पर किसान व सरकार का विवाद चल रहा है, जिस समय भारत को आत्मनिर्भर बनाकर विकसित राष्ट्र के रूप में विश्व पटल पर स्थापित करने का प्रयास चल रहा हो, जब राष्ट्र निर्माण से जुड़े लोगों के मन देश को विकास पथ पर अग्रसित करने के लिए नये-नये कई सवाल तैर रहे हो, उस समय हमारे प्यारे देश में कभी आरक्षण की मांग को लेकर राजस्थान, गुजरात व हरियाणा में तोडफ़ोड़ करके देश की अनमोल संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाये, कभी दिल्ली दंगे में लोगों के जानमाल को नुकसान पहुंचाया जाये, कभी सीएए व कभी कृषि कानूनों के नाम पर चंद षड्यंत्रकारी लोगों के द्वारा देश में जानमाल को नुकसान पहुंचाया जाए, देश की शान लालकिले की प्राचीर पर धर्म विशेष का ध्वज फहराया जाए, वह स्थिति देश व समाज हित में बिल्कुल भी उचित नहीं है।