लखनऊ : 2022 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसमें अब बहुत ही कम समय शेष बचा है। चुनावों के समय ऐसे कई किस्से सामने आते है, जिनके बारे में आप और हम सुनना चाहते है। ऐसा ही एक किस्सा मायावती और रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया से जुड़ा हुआ है। आइए
राजा भैया और मायावती के बीच यहीं से शुरू हुई थी अदावत की कहानी
रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया और मायावती के बीच अदावत की कहानी की शुरूआत साल 1997 से हुई थी। दरअसल, मायावती ने भाजपा के साथ मिलकर 1997 में सरकार बनाई थी। सरकार बनाने के लिए जो डील फाइनल हुई थी वो यह थी कि दोनों पार्टियों के सीएम छह-छह महीने के लिए होंगे। डील के मुताबिक, मायावती को सितंबर में अपनी सरकार के छह महीने पूरे होने के बाद सत्ता बीजेपी को हस्तांतरित करना था। लेकिन ऐन मौके पर मायावती ने ऐसा करने से साफ इनकार दिया। हालांकि, सियासी दबाव में मायावती को कुर्सी छोड़नी पड़ी और तब कल्याण सिंह सीएम बने। लेकिन कुछ महीनों बाद मायावती ने बीजेपी से अपना समर्थन वापस ले लिया। उसी वक्त यूपी की सत्ता में राजा भैया की एंट्री हुई। राजा भैया ने उस वक्त मायावती की पार्टी बीएसपी और कांग्रेस के कुछ विधायकों को तोड़कर और कुछ निर्दलीय विधायकों के समर्थन से कल्याण सिंह की सरकार बचाने में मदद की थी। जिसके बाद राजा भैया को ‘कुंडा का गुंडा’ बताने वाले कल्याणा सिंह ने भी उन्हें अपनी सरकार में मंत्री बनाया था।
पोटा के तहत मायावती ने राजा भैया को भेजा था जेल
2002 में मायावती एक बार फिर से सत्ता में आईं। सत्ता में वापस आते ही मायावती ने बीजेपी विधायक पूरण सिंह बुंदेला की शिकायत पर 2 नवंबर, 2002 को तड़के सुबह करीब 4 बजे राजा भैया को आतंकवाद निरोधक अधिनियम (POTA) के तहत गिरफ्तार करवाकर जेल में डलवा दिया। रघुराज प्रताप सिंह की भदरी रियासत की हवेली में भी मायावती ने पुलिस का छापा डलवा दिया था। कहा जाता है कि इस छापे में हवेली से कई हथियार बरामद हुए थे। इसी के बाद राजा भैया पर पोटा लगाया गया था। उनके साथ उनके पिता उदय प्रताप सिंह और चचेरे भाई अक्षय प्रताप सिंह को भी अपहरण और धमकी देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। राजा भैया की जेल की बैरक में एके-47 राइफल मिलने के बाद सरकार ने उन्हें 7 अलग-अलग जेलों में रखा गया था।
600 एकड़ में फैले तालाब को खुदवा दिया था
मायावती ने साल 2003 में राजा भैया के प्रतापगढ़ स्थित भदरी रियासत की कोठी के पीछे 600 एकड़ में फैले बेंती तालाब को भी खुदवा दिया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ऐसा बताया जाता है कि तालाब की खुदाई में नरकंकाल मिले थे, जिसके बारे में कई कहानियां हैं। इस तालाब के बारे में ऐसी चर्चा थी कि राजा भैया ने इसमें घड़ियाल पाल रखे हैं और अपने दुश्मनों को इसी तालाब में फेंकवा दिया करते हैं। हालांकि, राजा भैया ने इसका खंडन किया था। मायावती ने 16 जुलाई 2003 को इस तालाब को सरकारी कब्जे में ले लिया था और इसे भीमराव अंबेडकर पक्षी विहार घोषित कर दिया था।
मायावती की सरकार गिरने के बाद खत्म हुई थी राजा भैया की मुश्किल
रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की मुश्किल उस वक्त खत्म हुई जब मायावती की सरकार गिर गई। मायावती की सरकार अगस्त 2003 में गिरी थी। मायावती की सरकार गिरने के बाद मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। मुलायम सिंह यादव ने शपथ ग्रहण करने के 25 मिनट के अंदर राजा भैया की रिहाई के आदेश पर दस्तखत कर दिए थे। फिर राजा भैया ने जेल से रिहा होकर न केवल पहली बार अपने जुड़वां बेटों का मुंह देखा बल्कि मुलायम सिंह सरकार में मंत्री भी बने। मुलायम सिंह ने इस तालाब के पक्षी विहार में तब्दील करने के मायावती सरकार के फैसले को भी पलट दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने पोटा हटाने के आदेश को किया था रद्द
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबि, 2005 में सुप्रीम कोर्ट और पोटा रिव्यू कमेटी ने राजा भैया और उनके पिता से पोटा हटाने का आदेश रद्द कर उनपर दोबारा मुकदमा चलाने का आदेश दिया था। इसके बाद राजा भैया ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। वो नवंबर, 2005 में एक बार फिर गिरफ्तार कर लिए गए। एक महीने बाद जमानत मिलने पर वो जेल से बाहर आए और मुलायम सिंह की सरकार में उन्हें फिर मंत्री पद मिला।
2007 में मायावती ने फिर तालाब को बना दिया था पक्षी विहार
2007 के विधानसभा चुनावों में मायावती फिर से सत्ता में आईं। इस बार वह बिना बैसाखी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार की मुखिया थी। लिहाजा, उन्होंने अपने सियासी दुश्मनों से एक-एक कर बदला लेना शुरू कर दिया। राजा भैया की बारी जल्दी ही आ गई। मायावती ने तालाब पर सरकारी कब्जा कर उसे पक्षी विहार बना दिया। 2010 के पंचायत चुनाव में एक प्रत्याशी की हत्या के आरोप में फिर से राजा भैया को गिरफ्तार कर लिया गया। उत्तर प्रदेश में ढाई दशक से प्रतापगढ़ की सियासत को अपने हिसाब से चला रहे निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के सामने इस बार अपने सियासी वर्चस्व को बचाए रखने की चुनौती है।