लखनऊ : उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तिथियों का ऐलान हो गया है। इसके साथ ही सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी तैयारियों में जुट गए हैं। वहीं दूसरी ओर टिकट की चाह रखने वाले दावेदारों की संख्या भी लखनऊ में काफी बढ़ गई है। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती भी अब पूरी तरह से चुनावी मोड में आ गई हैं। उन्होंने सभी जिलाध्यक्षों एवं पदाधिकारियों को निर्देश दिया है कि अगले दो से तीन दिनों के भीतर पहले चरण के चुनाव से सम्बंधित उम्मीदवारों की लिस्ट फाइनल कर घोषित कर दी जाए। ताकि उन्हें प्रचार करने का मौका मिल सके। बसपा सूत्रों की माने तो इस सप्ताह के अंत तक बसपा के उम्मीदवारों की पहली सूची आ सकती है।

दरअसल मायावती ने 2007 के यूपी विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी की प्रचंड सफलता को दोहराने को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हैं। इसके लिए मायावती ने अपने करीबी राजनीतिक सहयोगी, पार्टी के सांसद सतीश चंद्र मिश्रा को सोशल इंजीनियरिंग कार्यक्रम की कमान सौंप दी है। मिश्रा अब ब्राह्मण वोटों को मजबूत करने के लिए ‘प्रबुद्ध सम्मेलन’ (बौद्धिक सम्मेलन) आयोजित कर रहे हैं।

इसके बाद आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में बसपा के प्रदर्शन में सुधार करने का एक प्रयास किया गया, जहां पार्टी ने पारंपरिक रूप से बहुत प्रभावशाली प्रदर्शन दर्ज नहीं किया है। इन सभाओं को भी मिश्रा ने संबोधित किया था। मिश्रा की पत्नी कल्पना अब पार्टी के महिला मोर्चा का नेतृत्व कर रही हैं, जबकि बेटे कपिल को युवा नेता के रूप में पेश किया जा रहा है। पार्टी के सदस्यों का कहना है कि संगठन जमीन पर सक्रिय रहा है, बैठकें कर रहा है और कार्यकर्ताओं का आयोजन कर रहा है, लेकिन जब मायावती बाहर निकलती हैं, तो इससे कैडर के मनोबल पर भारी फर्क पड़ेगा।

राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले कुछ चुनावों में अपने घटते वोट शेयर के बावजूद पार्टी के समर्थकों के एक समर्पित आधार का हवाला देते हुए, जो कि मायावती के साथ वर्षों से जुड़ी हुई है, पार्टी को लिखना जल्दबाजी होगी। पार्टी के एक सदस्य का कहना है कि,

भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर मतदाताओं को बसपा की ओर ले जा सकती है। एक ऐसी पार्टी जिसे लोग आज भी उत्कृष्ट प्रशासन और कानून-व्यवस्था के लिए याद करते हैं, जब मायावती मुख्यमंत्री थीं।”

बसपा ने न केवल कई प्रभावशाली सदस्यों को खो दिया है, बल्कि स्थिति ने पार्टी में ओबीसी नेताओं की कमी को और भी बढ़ा दिया है। पिछले कुछ वर्षों में, दलित वोट भी यूपी में विभाजित हो गया है, जिसमें बड़े पैमाने पर जाटव बसपा के पक्ष में हैं। यूपी में पिछले दो चुनावों में भाजपा की प्रचंड जीत ने दिखाया है कि उसने जाति, लिंग और उम्र के आधार पर चुनाव लड़ा है। बसपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पार्टी में किसी भी महत्वपूर्ण ओबीसी नेता की अनुपस्थिति, विशेष रूप से सपा में स्थानांतरित होने के बाद, इसके पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर और विधानसभा में पार्टी के नेता लालजी वर्मा सहित, पार्टी के बीच इसकी अपील को और कम कर सकती है।

पिछले कुछ मौकों पर जहां मायावती ने मीडिया से बातचीत के दौरान यह पूछा गया कि आप प्रचार के लिए बाहर नहीं निकल रहीं हैं, इसपर उन्होंने कहा था कि जो लोग ज्यादा परेशान हैं वहीं मैदान में समय से पहले दिखाई दे रहे हैं। हमारी तैयारी पूरी है और समय के साथ हम आगे बढेंगें। वहीं बसपा के सूत्रों की माने तो चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद उनकी रैलियां आखिरकार शुरू हो जाएंगी। हालांकि पार्टी की यह चिंता जरूर है कि एक तरफ जहां कोरोना बढ़ रहा है वहीं दूसरी ओर आयोग 15 जनवरी तक रैलियों पर रोक लगा दी है।

354300cookie-checkलखनऊ : चुनावी तिथियों के ऐलान के साथ ही मायावती ने बढ़ाई सक्रियता, जल्द कर सकती हैं उम्मीदवारों की पहली सूची का ऐलान
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