लखनऊ(CNF)/ अमरोहा जिले से महज 20 किलोमीटर दूर बावनखेड़ी गांव है, यहां अप्रैल 2008 के बाद से कोई भी अपनी बेटी का नाम ‘शबनम’ नहीं रखते। दरअसल, गांव के लोग आज भी 14/15 अप्रैल 2008 की वो काली रात का खौफ अपने दिल और दिमाग से नहीं निकाल सके है। जिस दिन शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर 10 साल के बच्चे समेत 7 लोगों की कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी थी। इस घटना को 13 साल बीत चुके है, लेकिन इस गांव के लोग आज भी शबनम के नाम से खौफ खाते है और उससे नफरत करते है।

शबनम और उसका बेटा बचा था जिंदा

शबनम और सलीम के बीच प्रेम संबंध थे। शबनम ने अंग्रेजी और भूगोल में एमए किया था। वह सूफी परिवार की थी। वहीं सलीम पांचवीं फेल था और पेशे से एक मजदूर था। इसलिए दोनों के संबंधों को लेकर परिजन विरोध कर रहे थे। 14-15 अप्रैल 2008 की काली रात को शबनम ने सलीम के साथ मिलकर अपने पूरे परिवार की हत्या कर दी। इस जघन्य हत्याकांड में शबनम के परिवार का कोई जिंदा बचा था तो वो खुद शबनम और उसके पेट में पल रहा दो माह का बेटा ही था। इस दिल दहला देने वाले हत्याकांड के बाद यह गांव सारे देश में बदनाम हुआ। अब शबनम को फांसी होने वाली है, उसकी दया याचिका राष्ट्रपति ने ठुकरा दी है। इस घटना के बाद गांव के लोगों को शबनम से इतनी नफरत हो गई कि अब इस गांव में कोई अपनी बेटी का नाम शबनम रखना ही नहीं चाहता। तब से लेकर आज तक किसी भी बेटी का नाम शबनम नहीं रखा गया है।

राष्ट्रपति के यहां से भी खारिज हुई दया याचिका

पिछले साल शबनम ने फांसी पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। इस पुनर्विचार याचिका को सलीम और शबनम के वकील आंनद ग्रौवर ने दायर किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की निचली अदालत ने फैसले को बरकरार रखा है। इसके बाद शबनम-सलीम ने राष्ट्रपति को दया याचिका भेजी थी, लेकिन राष्ट्रपति भवन से उनकी याचिका को खारिज कर दिया है। एक बार फिर से उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार दायर की है जिसकी सुनवाई इसी महीने होनी है, जिसके बाद फैसला होगा कि दोनों को फांसी दी जाएगी या नहीं। बता दें कि आजादी के बाद शबनम पहली महिला कैदी होगी जिसे फांसी दी जाएगी। फिलहाल शबनम बरेली तो सलीम आगरा जेल में बंद है।


बुलंदशहर के उस्मान सैफी ने लिया था शबनम के बेटे को गोद

शबनम के बेटे को बुलंदशहर जिले के रहने वाले पत्रकार उस्मान सैफी ने गोद लिया था। अक्सर वो शबनम और उसके बेटे से मिलने जाया करते थे। अमरोहा की बाल कल्याण समिति वहां जाकर उनके बच्चे का हाल-चाल लेती है। उस्मान ने कहा कि एक बार उसने शबनम और सलीम की तस्वीर देखी तो पूछा कि मां के साथ कौन है। उन्होंने उससे कहा कि वह उसके अंकल है। उन्होंने बताया कि वे लोग बच्चे के कुछ नहीं बताते हैं लेकिन पता नहीं कब तक सच छिपा पाएंगे।

शबनम ने की थी उस्मान की मदद

उस्मान ने मीडिया को दिए अपने एक बयान में बताया था कि ‘मैं और शबनम एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। वह मुझसे दो साल सीनियर थी। हम दोनों एक ही बस से आते-जाते थे। एक बार मेरे पास फीस जमा करने के लिए रुपये नहीं थे तो उसने मेरी मदद की थी। जब मुझे घटना का पता चला तो बहुत बुरा लगा। बाद में उनके बच्चे को देखभाल के लिए किसी को सौंपा जाना था, इसलिए मैंने उनके बेटे को गोद ले लिया।’

26360cookie-checkयूपी के इस गांव में आज भी कोई नहीं रखता अपनी बेटी का नाम ‘शबनम’, बेटे को बुलंदशहर के दंपति ने लिया था गोद

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