कानपुर : चीफ आफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत को हायब्रिड वार फेयर की महारत हासिल थी और उनकी युद्ध रणनीति बेजोड़ थी। उनके निर्णयों में 40 वर्षों का अनुभव दिखता था। साथ रहे सैन्य अधिकारियों ने युद्ध की यादें साझा करते हुए उनका जाना सेना के लिए ही नहीं बल्कि देश के लिए भी अपूर्णनीय क्षति बताया।
सैन्य अफसरों ने बताया कि जनरल बिपिन रावत ने सीडीएस रहते हुए तीनों सेनाओं के बीच बेहतर समन्वय स्थापित किया जिससे भारत की सैन्य ताकत कई गुना बढ़ी है। आपरेशन पराक्रम के दौरान बारामूला में उनकी बेजोड़ रणनीति, दूरदर्शिता और योजना का परिचय मिला था। उस समय बतौर मेजर वहां तैनात था। सीडीएस बिपिन रावत उस वक्त जनरल अफसर कमांडिंग थे। रिटायर्ड कर्नल जाहिद सिद्दीकी सेवा मेडल बताते हैं कि कारगिल युद्ध से पहले 1999 में राजस्थान में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ आपरेशन पराक्रम शुरू किया था उस दौरान बारामूला में उनके अनुभवों से काफी कुछ सीखने को मिला।
ब्रिगेडियर नवीन सिंह वीर चक्र विशिष्ट सेवा मेडल बताते हैं कि चीफ आफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत के निर्णयों में उनके 40 वर्षों का अनुभव दिखायी देता था।उनकी नेतृत्व क्षमता जितनी बेहतरीन थी वह उतने ही कुशल योद्धा थे। उन्होंने बताया कि जनरल से कई मौकों पर मिलने और उनके अनुभवों से काफी कुछ सीखने का अवसर मिला।चाइना बार्डर, प्रयागराज, दिल्ली और कोलकाता में उनसे कई बार मिले।उनकी लीडरशिप में परिपक्वता दिखायी देती थी। वह बहुत ही शांत स्वभाव के थे।
सादा जीवन और उ’च विचार जैसी जीवन शैली थी। वह जब सीडीएस बने तो उस पोजीशन पर तीनों सेनाओं को इंटीग्रेट करने का बेहतर प्रयास किया और उसमें सफल हुए।उन्होंने सेना की मारक क्षमता को बढ़ाने का काम किया। वह अधिकारियों को एनालाइज करते थे।अक्सर देखते थे कि हम कितने तैयार हैं।निश्चित ही उनका जाना सेना की अपूर्णनीय क्षति है।